क्या हमें हिन्दू नाम विरासत में मिला?
धर्म की परिभाषा क्या है?
हमारे वेदों ने तो कुछ और ही समझाने का प्रयास किया। असल में हमारे धर्म की प्रकृति सदैव परोपकारी ही रही थी,इसलिए प्राचीन भारतवर्ष विश्वगुरु के पद पर स्थापित था जिसका भंडार स्वयं अक्षय पात्र की तरह था जहाँ विलासिता एवम् तामसी लोगों के लिए तो कुछ नहीं परन्तु ज्ञान एवम् संस्कृति के लिए लालायित लोगों के लिए अपार भंडार था। असल में वह सनातन भारत था।हमारे वेद साक्षी हैं।उन्होंने हमेशा यह बताने का प्रयास किया कि प्रकृति ही एकमात्र भगवान है जिसके विभिन्न रूप हैं रूप हैं एवम् विभिन्न नाम हैं।ब्रम्हा,विष्णु,महेश यह सभी प्रकृति के आधारभूत अंग हैं एवम् प्रकृति स्वयं माता शक्ति के रूप में पूजनीय है।प्रकृति के तत्व ही वे प्रकृति पुत्र हैं जिन्हें हम देव कहकर उनकी अर्चना करते हैं।अगर चेतना जागृत की जाये तो वे सब यहीं हैं एवम् हर पल हमारे समक्ष विद्यमान हैं फिर भी लोग उन्हें मूर्ती में ढूंढते हैं एवम् जो साक्षात् हैं उनका तिरस्कार कर रहे हैं।
यदि अंतर्मन से देखा जाये तो सूर्य,वरुण(जल),पवन,अग्नि,चन्द्र,कुबेर आदि अनादि देव सदैव अपनी प्रकृति से ही हमारे जीवन को सुखमय बना रहे हैं। फर्क बस अन्धविश्वास का है। कुछ लोगों ने अपनी दुकानदारी खोलकर इन्हें एक आकार दे दिया और अंधविश्वासी लोग अनुसरण करने लगे।
ईश्वर सत्य है।
आतंकवाद भी प्रकृति का एक अंग है।
यदि समय पर नहीं जागे तो विनाश निश्चित है।
आतंकवाद को सिर्फ अध्यात्म से ख़त्म किया जा सकता है।
अगर टी.वी. सीरियल्स से ही सीखना है तो भी अर्थ को समझने की कोशिश कीजिये केवल।
शिव ही विनाश के अधिकारी हैं एवम् राक्षसों एवम् दैत्यों के पूज्य हैं।
इसका अर्थ क्या हो सकता है?
इसका अर्थ यही है कि प्रकृति का दुरुपयोग ही विनाश का कारण बनता है।
हमारे वेद एक धर्म मात्र ही नहीं प्राचीन काल के सिध्द
विज्ञान हैं जिसका ज्ञान अनन्त हैं एवम् वर्तमान में धर्म की जो परिभाषा प्रचलित है वह धर्म के मायने को किसी भी प्रकार से सिद्ध नहीं करती।हम सनातनी हैं,
प्रकृति हमारी माँ है।
G- Generator
O- Operator
D- Destroyer
Nature's the Real GOD
धर्म की परिभाषा क्या है?
हमारे वेदों ने तो कुछ और ही समझाने का प्रयास किया। असल में हमारे धर्म की प्रकृति सदैव परोपकारी ही रही थी,इसलिए प्राचीन भारतवर्ष विश्वगुरु के पद पर स्थापित था जिसका भंडार स्वयं अक्षय पात्र की तरह था जहाँ विलासिता एवम् तामसी लोगों के लिए तो कुछ नहीं परन्तु ज्ञान एवम् संस्कृति के लिए लालायित लोगों के लिए अपार भंडार था। असल में वह सनातन भारत था।हमारे वेद साक्षी हैं।उन्होंने हमेशा यह बताने का प्रयास किया कि प्रकृति ही एकमात्र भगवान है जिसके विभिन्न रूप हैं रूप हैं एवम् विभिन्न नाम हैं।ब्रम्हा,विष्णु,महेश यह सभी प्रकृति के आधारभूत अंग हैं एवम् प्रकृति स्वयं माता शक्ति के रूप में पूजनीय है।प्रकृति के तत्व ही वे प्रकृति पुत्र हैं जिन्हें हम देव कहकर उनकी अर्चना करते हैं।अगर चेतना जागृत की जाये तो वे सब यहीं हैं एवम् हर पल हमारे समक्ष विद्यमान हैं फिर भी लोग उन्हें मूर्ती में ढूंढते हैं एवम् जो साक्षात् हैं उनका तिरस्कार कर रहे हैं।
यदि अंतर्मन से देखा जाये तो सूर्य,वरुण(जल),पवन,अग्नि,चन्द्र,कुबेर आदि अनादि देव सदैव अपनी प्रकृति से ही हमारे जीवन को सुखमय बना रहे हैं। फर्क बस अन्धविश्वास का है। कुछ लोगों ने अपनी दुकानदारी खोलकर इन्हें एक आकार दे दिया और अंधविश्वासी लोग अनुसरण करने लगे।
ईश्वर सत्य है।
आतंकवाद भी प्रकृति का एक अंग है।
यदि समय पर नहीं जागे तो विनाश निश्चित है।
आतंकवाद को सिर्फ अध्यात्म से ख़त्म किया जा सकता है।
अगर टी.वी. सीरियल्स से ही सीखना है तो भी अर्थ को समझने की कोशिश कीजिये केवल।
शिव ही विनाश के अधिकारी हैं एवम् राक्षसों एवम् दैत्यों के पूज्य हैं।
इसका अर्थ क्या हो सकता है?
इसका अर्थ यही है कि प्रकृति का दुरुपयोग ही विनाश का कारण बनता है।
हमारे वेद एक धर्म मात्र ही नहीं प्राचीन काल के सिध्द
विज्ञान हैं जिसका ज्ञान अनन्त हैं एवम् वर्तमान में धर्म की जो परिभाषा प्रचलित है वह धर्म के मायने को किसी भी प्रकार से सिद्ध नहीं करती।हम सनातनी हैं,
प्रकृति हमारी माँ है।
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